व्हाइट हाउस और Intel डील: अमेरिकी सरकार की 10% हिस्सेदारी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लिए क्या मायने रखती है?
आज की दुनिया में सेमीकंडक्टर और चिप टेक्नोलॉजी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था, रक्षा और डिजिटल सुरक्षा की रीढ़ मानी जाती है। अमेरिका लंबे समय से चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर चिप सप्लाई के लिए निर्भर रहा है। ऐसे में व्हाइट हाउस का हालिया फैसला कि अमेरिकी सरकार अब Intel कंपनी में लगभग 10% हिस्सेदारी लेगी, न सिर्फ ऐतिहासिक है बल्कि आने वाले वर्षों में टेक इंडस्ट्री के समीकरण बदलने वाला कदम भी है।
सरकार और Intel की डील
यह सौदा लगभग 8.9 अरब डॉलर का है, जिसके तहत अमेरिका सरकार Intel में 9.9% यानी लगभग 10% इक्विटी हिस्सेदारी लेगी। खास बात यह है कि यह हिस्सेदारी गैर-मतदान (Non-Voting Shares) के रूप में होगी। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार के पास कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में कोई स्थान या सीधा निर्णय लेने का अधिकार नहीं होगा। यानी सरकार केवल वित्तीय हिस्सेदार होगी, न कि कंपनी के रोज़मर्रा के संचालन में दखल देगी।
पैसे का स्रोत कहाँ से आया?
यह निवेश पूरी तरह उन पैसों से किया जा रहा है, जो पहले से ही Intel को CHIPS and Science Act और Secure Enclave कार्यक्रम के तहत मिलने वाले थे। इन दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य अमेरिका को चिप निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना और सप्लाई चेन को सुरक्षित करना है।
लगभग 5.7 अरब डॉलर CHIPS एक्ट से आएंगे।
करीब 3.2 अरब डॉलर Secure Enclave फंड से।
इस तरह सरकार ने तय किया कि ये ग्रांट सीधे सब्सिडी के रूप में न देकर कंपनी में हिस्सेदारी के रूप में दिए जाएँगे, ताकि जनता के टैक्स का पैसा भी भविष्य में रिटर्न दे सके।
सरकार के इस कदम के पीछे मकसद
1. राष्ट्रीय सुरक्षा – चिप्स अब केवल मोबाइल और लैपटॉप तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मिसाइल, फाइटर जेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा जैसी संवेदनशील तकनीकों में इस्तेमाल होते हैं।
2. आर्थिक आत्मनिर्भरता – अमेरिका एशियाई देशों पर निर्भरता घटाकर अपने देश में बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग चाहता है।
3. रोज़गार सृजन – Intel आने वाले सालों में अमेरिका में हज़ारों नई नौकरियाँ पैदा करेगा, जो सीधे इस निवेश से जुड़ी होंगी।
4. वैश्विक टेक लीडरशिप – चीन और यूरोप के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की कमान उसके ही हाथ में रहे।
आलोचना और विवाद
हालांकि इस फैसले का हर कोई स्वागत नहीं कर रहा। कई आलोचक, जिनमें कुछ अमेरिकी सीनेटर भी शामिल हैं, इसे निजी कंपनियों में सरकार का अति हस्तक्षेप मानते हैं। उनका कहना है कि इस कदम से “फ्री मार्केट” की भावना कमजोर होगी और यह समाजवाद जैसी नीति की ओर इशारा करता है। दूसरी तरफ समर्थक इसे “स्मार्ट इन्वेस्टमेंट” बता रहे हैं क्योंकि सरकार केवल पैसे दे ही नहीं रही बल्कि उसके बदले शेयर भी ले रही है, जिससे भविष्य में टैक्सपेयर्स को फायदा होगा।
उद्योग पर असर
इस सौदे से टेक और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में बड़ा संदेश गया है। माना जा रहा है कि आगे चलकर AMD, Nvidia, Qualcomm जैसी अन्य कंपनियाँ भी सरकारी हिस्सेदारी वाले सौदों में शामिल हो सकती हैं। इससे अमेरिकी टेक इंडस्ट्री को दीर्घकालिक स्थिरता मिलेगी और विदेशी सप्लाई चेन पर निर्भरता घटेगी।
भारत और बाकी दुनिया पर प्रभाव
भारत जैसे देशों के लिए यह सौदा महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यहाँ भी सरकार घरेलू सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने के लिए योजनाएँ चला रही है। अमेरिका और Intel का यह कदम भारत के लिए एक मॉडल की तरह काम कर सकता है कि किस तरह सरकारी नीतियाँ निजी कंपनियों के साथ मिलकर रणनीतिक उद्योगों को मजबूत बना सकती हैं।
निष्कर्ष
Intel में अमेरिकी सरकार की 10% हिस्सेदारी केवल एक कारोबारी सौदा नहीं है, बल्कि यह आने वाले दशकों के लिए टेक्नोलॉजी और भू-राजनीति (Geo-Politics) की दिशा तय करने वाला कदम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले से चिप मार्केट में क्या बदलाव आते हैं और अन्य देश इस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।